स्वामी विवेकानंद जी (कविता)

महावीर पुरुषार्थ सबल पथ,
मति विवेक रथ यायावर था।
चिन्तक ज्ञानी वेदान्तक सच,
शक्ति उपासक महा प्रखर था।

नवतरंग नवयौवन सरिता,
अन्वेषक नित अनुशोधक था।
विवेकानंद पूत राष्ट्र यश,
नरेन्द्र कालिका साधक था।

युवाशक्ति का अति सत्प्रेरक,
शिकागो विश्व विजेता था।
उपहासित वह पाया दो पल,
दिनसप्तक विजयी वक्ता था।

दिया ज्ञान वह शून्य विषयक,
वेदान्त मुदित विश्वपटल था।
चतुर्वेद दर्शन न्यायिक शुभ,
धर्म सनातन प्रति अविचल था।

ज्ञान, कर्म राज दान योग जग,
महापुरोधा सत्पथ रत था।
महा प्रचारक आस्तिकता का,
सद्भावन समरस प्रमुदित था।

नास्तिक स्वभावी था नरेंद्र,
पर रामकृष्ण दृष्टिपटल था।
परमहंस का कृपापात्र बन,
माँ काली दर्शन विह्वल था।

नीति प्रीति मानवता रक्षक,
क्षमा दया करुणा हृदयतल था।
मान सकल वसुधा कुटुम्बकम्,
राष्ट्र प्रथम रक्षण जीवन था।

भारत पावन विवेकानंद,
युवाशक्ति का गौरव रथ था।
देशभक्ति रस मर्यादित नित,
विवेकानंद परहित पथ था।

स्वामी साधक समता सबजन,
स्वाभिमान भारत सेवक है।
नमन विवेकानंद विनत मन,
जयतु भारतं मधु गायक था।


लेखन तिथि : 5 जनवरी, 2022
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