स्वप्न में प्रेम (कविता)

दूसरे दिनों से ज़रा ज़्यादा ही होती है हरारत उस सुबह की
रॉकेट-सा आसमान चढ़ जाता तापमान

यकायक भाप के जंगल में तब्दील होता
बाथरूम का आईना
कुल जमा तीन अक्षर भरते कुलाँचे चारों दिशाओं में
दिशाओं के चार से दस होते देर नहीं लगती

सारी दिशाएँ प्रेम का बहुवचन हैं

जब तक शिकारी तानता धनुष
ओझल हो जाता मायावी हिरण आँखों की चौंध में

स्वप्न नशे में धुत्त अफ़ीमची नहीं
किसी फ़रार मुजरिम की खोज में जागता सिपाही है

और तुम!

मेरी उनींदी काया में छुप के रहते हो ऐसे
कि जैसे 'ऑनेस्टी' में बेईमानी से 'एच' रहता है


रचनाकार : बाबुषा कोहली
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