स्वतंत्रता (कविता)

एक घड़ी की भी परवशता कोटि नरक के सम है।
पलभर की भी स्वतंत्रता सौ स्वर्गों से उत्तम है।
जब तक जग में मान तुम्हारा तब तक जीवन धारो।
जब तक जीवन है शरीर में तब तक धर्म न हारो॥

जब तक धर्म तभी तक सुख है, सुख में कर्म न भूलो।
कर्म-भूमि में न्याय-मार्ग पर छाया बनकर फूलो।
जहाँ स्वतंत्र विचार न बदलें मन से आकर मुख में।
बने न बाधक शक्तिमान जन जहाँ निबल के सुख में॥

निज उन्नति का जहाँ सभी जन को समान अवसर हो।
शांतिदायिनी निशा और आनंद-भरा वासर हो।
उसी सुखी स्वाधीन देश में मित्रो! जीवन धारो।
अपने चारु चरित से जग में प्राप्त करो फल चारो॥


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