साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3568
इटावा, उत्तर प्रदेश
1925 - 2018
तब किसी की याद आती! पेट का धंधा ख़त्म कर लौटता हूँ साँझ को घर बंद घर पर, बंद ताले पर थकी जब आँख जाती। तब किसी की याद आती! रात गर्मी से झुलसकर आँख जब लगती न पलभर और पंखा डुलडुलाकर बाँह थक-थक शीघ्र जाती। तब किसी की याद आती! अश्रु-कण मेरे नयन में और सूनापन सदन में देख मेरी क्षुद्रता वह जब कि दुनिया मुस्कुराती। तब किसी की याद आती!
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