तैरने से पहले
भर लेना चहाता हूँ दिमाग़ में
इन घाटों और अरारों की स्मृति
जहाँ से मेरी यात्री भूमिका शुरू होगी
यहीं मैंने सीखा हाथ-पाँव मारना
यहीं सुने यात्रा के क़िस्से
‘भौंरा’ निगला
और ख़ुद को औंधा कर सीखा
लहरों पर चलना
मैं सुन सकता हूँ
अँधियारे दर्रों की ख़ौफ़नाक आहटें
तैर सकता हूँ धारा के ख़िलाफ़
मुझे पता है लहरों का व्यूह
और कैसे निकलना होता है धँसानों से
एक बार फिर देख लूँ
अपनी जड़ों में पसरने की ज़मीन
पुनः लौटना होगा मुझे
जब मेरे पाँव जम जाएँगे
यात्री भूमिका भी...।

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