तम जहाँ में पल रहा है (ग़ज़ल)

तम जहाँ में पल रहा है,
रौशनी को छल रहा है।

मैं करूँ तो क्या करूँ अब,
आग है कुछ जल रहा है।

सूर्य भी दिन भर चला औ,
शाम होते ढल रहा है।

रात कितनी बेहया है,
गो ग़लत कुछ चल रहा है।

आँख में आँसू भरे हैं,
वक्त ही तो खल रहा है।


लेखन तिथि : 7 नवम्बर, 2021
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अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
तक़ती : 2122 2122
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