तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था (ग़ज़ल)

तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था
वो फ़ासला जो तिरे मेरे दरमियान में था

परों में सिमटा तो ठोकर में था ज़माने की
उड़ा तो एक ज़माना मिरी उड़ान में था

उसी पे हो गया क़ुर्बान दो दिलों का मिलाप
वो जाएदाद का झगड़ा जो ख़ानदान में था

तुझे गँवा के कई बार ये ख़याल आया
तिरी अना ही में कुछ था न मेरी आन में था


रचनाकार : वसीम बरेलवी
  • विषय : -  
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