तन्हाई से जब उक्ता के बैठ गया (ग़ज़ल)

तन्हाई से जब उक्ता के बैठ गया
मैं फिर मयख़ाने में आ के बैठ गया

पत्थर को पत्थर ही अच्छे लगते हैं
सो अपने तबक़े में जा के बैठ गया

आज गली से मैं ने देखा था उस को
चंदा छत पर ही शर्मा के बैठ गया

साँझ ढली तो हम भी अपने घर आए
साया पास हमारे आ के बैठ गया

आख़िर एक चराग़ ने ऐसी क्या ठानी
देखो आगे आज हवा के बैठ गया

लोगों ने पूछा जब उस के बारे में
'राही' अपनी नज़्म सुना के बैठ गया


रचनाकार : विजय राही
  • विषय : -  
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