तवा (कविता)

वह लौटने का वक़्त है

एक औरत इंतज़ार करती है
चूल्हे के पास रखे तवे के साथ

तवा ठंडा है

मैं जब कोई ठंडा तवा देखता हूँ
काँप उठता हूँ

ठंडे तवे के पास फैली है
उदास ख़ामोशी

इस उदास ख़ामोशी से
मैं निपटना चाहता हूँ
तवे को मैं तपता हुआ देखना चाहता हूँ
लेकिन यह चुनौती देता रहता है
मुझे सुबह और शाम

लौटने का वक़्त हो चला है

अभी एक आदमी
कुछ बुदबुदाता आएगा
एक गंदे झोले के साथ
थक कर चूर


रचनाकार : विनोद दास
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