थैला (कविता)

बस में भीड़
पैर पर पैर
मुँह पर मुँह
हाथ पर पेट
पेट पर जाँघ
जाँघ पर पीठ
भीड़ में हाय
फँस जाता है बीच में थैला
अड़ जाता है
पीछे रह जाता है भीड़ में थैला
बचाता है उसे
निकाला जाँघों
बाँहों और पैंटों की
लहरों से
थैले में रोटी है।

सड़क पर भागमभाग
इधर से उधर हाय-हाय
लाल-हरी बत्तियाँ
सार्वजनिक शौचालय
भागता बचता पिचता
बचाता है वह
थैला!
थैले में रोटी है!


रचनाकार : इब्बार रब्बी
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