ठंड की मिठास (कविता)

ठंडी सिहरन शाम शहर से,
तन मन ठिठुरे घर आँगन भी।
तेज़ किरण लालिमा भाती,
सूरज जागे देर, जल्द शयन भी॥

ओस की बूँदें हल्की-हल्की,
मोती बनकर चमके चमचम।
धरती का शृंगार ये करती,
चितवन भरती मध्यम हरदम॥

धुँध क़हर से ढक जाए धरती,
उजला करती वन सड़क भी।
जल्दी सोते, ना उठते हम सब,
धरती हो जाए सर्द कड़क भी॥

हाथ भी आग पकड़ने व्याकुल,
कट-कट दाँत संगीत निकले।
कंबल चादर तान शरीर पर,
बाबु के संग 'बाबू' लिपटे॥

बड़ी सुहानी शीतल मनोहर,
ठंड सुहाए मस्ती करती।
घर परिवार को साथ समेटे,
पल में सम्बंध का भाव भरती॥


लेखन तिथि : 27 नवम्बर, 2022
यह पृष्ठ 337 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें