तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है (ग़ज़ल)

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है
वो राहत मुसीबत है राहत नहीं है

जुनून-ए-मोहब्बत का दीवाना हूँ मैं
मिरे सर में सौदा-ए-हिकमत नहीं है

तिरे ग़म की दुनिया में ऐ जान-ए-आलम
कोई रूह महरूम-ए-राहत नहीं है

मुझे गरम-ए-नज़्ज़ारा देखा तो हँस कर
वो बोले कि इस की इजाज़त नहीं है

झुकी है तिरे बार-ए-इरफ़ाँ से गर्दन
हमें सर उठाने की फ़ुर्सत नहीं है

ये है उन के इक रू-ए-रंगीं का परतव
बहार-ए-तिलिस्म-ए-लताफ़त नहीं है

तिरे सरफ़रोशों में है कौन ऐसा
जिसे दिल से शौक़-ए-शहादत नहीं है

तग़ाफ़ुल का शिकवा करूँ उन से क्यूँकर
वो कह देंगे तू बे-मुरव्वत नहीं है

वो कहते हैं शोख़ी से हम दिलरुबा हैं
हमें दिल नवाज़ी की आदत नहीं है

शहीदान-ए-ग़म हैं सुबुक रूह क्या क्या
कि उस दिल पे बार-ए-नदामत नहीं है

नमूना है तक्मील-ए-हुस्न-ए-सुख़न का
गुहर बारी-ए-तबा-ए-हसरत नहीं है


रचनाकार : हसरत मोहानी
  • विषय : -  
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