तू किसी के ख़्वाबों की तावीज़ बन,
शायरी बन,
उसका मीर बन,
उसका ख़ून भी लगे तेरे बिन बेरंग,
दिल के हर ज़ख़्म को दे इक रंग,
तू उसकी आरज़ू बन,
तिलिस्म बन,
नज़र बन,
दहलीज़ बन,
पग-पग फूल बन,
तू किसी की ज़िंदगी बन,
इक अरमान बन,
किसी का देव बन,
कमली नाम बन,
इक राज़ बन,
दिल तुझे ही रटता रहे,
तू किसी का श्याम बन,
जान बन,
श्रद्धा बन,
तू किसी का पूरा जहाँ बन।।

लेखन तिथि : 14 सितम्बर, 2020
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यह कविता सन्तोष ताकर जी द्वारा अनकहे अल्फाज़ साहित्यिक संस्थान रेनवाल (जयपुर) के संस्थापक 'श्री श्याम सुन्दर मेहरड़ा जी' के जन्म दिवस (16 सितम्बर) पर समर्पित है।