तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो।
आँखों में नमी हँसी लबों पर,
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो।
बन जाएँगे ज़हर पीते पीते,
ये अश्क जो पीते जा रहे हो।
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है,
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो।
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर,
रेखाओं से मात खा रहे हो।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
