तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो (ग़ज़ल)

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो।

आँखों में नमी हँसी लबों पर,
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो।

बन जाएँगे ज़हर पीते पीते,
ये अश्क जो पीते जा रहे हो।

जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है,
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो।

रेखाओं का खेल है मुक़द्दर,
रेखाओं से मात खा रहे हो।


रचनाकार : कैफ़ी आज़मी
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जगजीत सिंह ने साल 1983 में आई फ़िल्म 'अर्थ' में इस ग़ज़ल को गाया था।


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