तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल (नअत)

तुम पर मैं लाख जान से क़ुर्बान या-रसूल
बर आएँ मेरे दिल के भी अरमान या-रसूल

क्यों दिल से मैं फ़िदा न करूँ जान या-रसूल
रहते हैं इस में आप के अरमान या-रसूल

कुश्ता हूँ रू-ए-पाक का निकलूँ जो क़ब्र से
जारी मिरी ज़बाँ पे हो क़ुरआन या-रसूल

दुनिया से और कुछ नहीं मतलूब है मुझे
ले जाऊँ अपने साथ में ईमान या-रसूल

इस शौक़ में कि आप के दामन से जा मिले
मैं चाक कर रहा हूँ गरेबान या-रसूल

मुश्किल-कुशा हैं आप 'अमीर' आप का ग़ुलाम
अब इस की मुश्किलें भी हों आसान या-रसूल


रचनाकार : अमीर मीनाई
  • विषय : -  
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