तुम से जीवन का क्षण-क्षण गुंजित,
कण-कण अनुरंजित है!
तुम मानस में स्वर-रूप-रंग-रस
बन कर लहराई हो,
अनदेखे अंतर्शतदल पर
परिमल बन कर छाई हो;
मेरे उर का सर्वस्व आज
उन नयनों में सस्मित है!
तुम से जीवन का क्षण-क्षण गुंजित,
कण-कण अनुरंजित है!
जब मुस्कानों के हंस दूत
संदेश हृदय का लाए,
पहचान प्राण को प्राण—
सहज मधुबंधन में बँध पाए!
दो पथिक अपरिचित दूरागत,
अंतर्चित चिर-परिचित है!
तुम से जीवन का क्षण-क्षण गुंजित,
कण-कण अनुरंजित है!
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