प्रिय! तुम्हारा जो सन्देश आया,
जैसे बहारों का मौसम छाया।
भीनी सी गंध
श्वासों को भिगा गई,
अनकहे सवालों ने
हृदय में हलचल मचा दी।
खिल गई हृदय-कली
नव कंवल, नव लता सी
मादकता विशेष
अमराई सा बौराया,
प्रिय! तुम्हारा जो सन्देश आया।
शिशिर ऋतु सी सिहरन
रक्त धमनियों में दौड़ आई,
मधुर मिलन के सुरमई एहसास से
कलियाँ हृदय की सकुचाई,
अन्तर्मन झूमने लगा
छुईमुई सी लज्जा शरमाई।
लज्जा का घूँघट ओढ़े
मन-मधुकर हर्षाया,
युगल दृगों के समक्ष
तुम्हारा ही मनभावन रूप छाया,
प्रिय! तुम्हारा जो सन्देश आया।

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