साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रीवा, मध्य प्रदेश
1967
तुम्हारी आँखों में विश्वास धीरज और करुणा से मिला देह-जल है उनके नीचे का स्याह भाग बार-बार क्षमा के बैठने से स्याह पड़ा है तुम्हारी आँखें हमारे अपने दो क्षितिज हैं जिनमें हम अक्सर आया-जाया करते हैं इन आँखों से ही तुम मेरी हर हरकत को ताड़ती हो फिर भी तुम हारती हो और जीत मेरे छल की ही होती है!
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