उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
अजीब दिल है गिरूँ तो सँभाल लेता है
ये कैसा शख़्स है कितनी ही अच्छी बात कहो
कोई बुराई का पहलू निकाल लेता है
ढले तो होती है कुछ और एहतियात की उम्र
कि बहते बहते ये दरिया उछाल लेता है
बड़े-बड़ों की तरह-दारियाँ नहीं चलतीं
उरूज तेरी ख़बर जब ज़वाल लेता है
जब उस के जाम में इक बूँद तक नहीं होती
वो मेरी प्यास को फिर भी सँभाल लेता है
अगली रचना
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आतापिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें