उड़ते हुए (कविता)

कभी
अपने नवजात पंखों को देखता हूँ
कभी आकाश को

उड़ते हुए।

लेकिन ऋणी मैं फिर भी
ज़मीन का हूँ

जहाँ
तब भी था—जब पंखहीन था
तब भी रहूँगा जब पंख झर जाएँगे।


रचनाकार : वेणु गोपाल
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