हर क़दम मंज़िल खड़ी है,
तुम चलो दो क़दम।
जो ठहरा नहीं चलता गया,
मिल गया उसे हमदम।
रुकना नहीं झुकना नहीं,
आगे रखो हर क़दम।
मंज़िल की ओर देखते रहो,
जब तक है साँसों में दम।
हौसलों से होती है उड़ाने,
कहाँ हैं पंखों में दम।
हवाओं रुख़ मोड़ देती हैं,
जब इरादे हो भरकम।
रास्ता देती है चट्टानें भी,
हथियार हो आत्मसंयम।
समुद्र लहर बन जाता है,
तूफ़ानी हो जब दमख़म।

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
