साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3564
अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
1938 - 2000
अँधेरा मन के भीतर था उजाले की राह रोक कर खड़ा। अँधेरे के ख़िलाफ़ क्या कर सकता था मैं ख़ुद को जला देने के अलावा? उजाला हतवाक् कि एक इंसान जल रहा था उसके पक्ष में खड़ा-खड़ा एक कवि लिख रहा था इस समूचे घटनाक्रम को अपनी कविता में इस तरह।
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