उजड़े दयार में (कविता)

बचे हुओं के पास कुछ न था
एक तोता रह सकता था कहीं और
गाय भी जा सकती थी कहीं जंगल में
बिल्ली और कुत्ता तो कम से कम
रह ही सकते थे इस उजड़े दयार में

जब कोई नहीं जा रहा था साथ
तोता, गाय और बिल्ली-कुत्ता चले आए पीछे
इस एक तंबू में

उनकी आँखें बह रही हैं धाराशार
और एक मैं हूँ, होकर भी नहीं हूँ
उनके इस तरह साथ होने पर

भीतर कुछ पिघल रहा बेहिसाब
उजाला सूख चुका है आँखों में
शब्द कंठ में और
बाहर सिर्फ़ रोने-चीख़ने की आवाज़ें हैं।


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