सागर-सा उमड़ पड़ूँ मैं,
लहरें असंख्य फैलाकर।
विचरूँ झंझा के रथ पर,
मैं ध्वंसक रूप बनाकर।
मैं शिव-सा ताण्डव दिखलाऊँ,
मैं करूँ प्रलय-सा-गर्जन।
बिजली बनकर तड़कूँ मैं,
काँपे नभ अवनी निर्जन।

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