साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
भोजपुर, बिहार
1907 - 1984
सागर-सा उमड़ पड़ूँ मैं, लहरें असंख्य फैलाकर। विचरूँ झंझा के रथ पर, मैं ध्वंसक रूप बनाकर। मैं शिव-सा ताण्डव दिखलाऊँ, मैं करूँ प्रलय-सा-गर्जन। बिजली बनकर तड़कूँ मैं, काँपे नभ अवनी निर्जन।
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