साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
रायपुर, छत्तीसगढ़
1964
नफ़रत में फन काढ़कर फुँफकारती है भाषा धधकती है जंगल में लगी आग की तरह बस प्यार में लीचियों की तरह सुर्ख़ हो जाती है गाढ़ी धूप में पकाती हुई हृदय का रस शब्द अधखिले रह जाते हैं भोर के कँवल की तरह और वाक्य साथ छोड़ देते हैं यही वो समय जब वसंत आता है और मधुमक्खियाँ धरती को शरद का उपहार देती हैं।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें