उपहार (कविता)

नफ़रत में फन काढ़कर
फुँफकारती है भाषा
धधकती है
जंगल में लगी आग की तरह

बस प्यार में
लीचियों की तरह सुर्ख़ हो जाती है
गाढ़ी धूप में
पकाती हुई हृदय का रस

शब्द अधखिले रह जाते हैं
भोर के कँवल की तरह
और वाक्य साथ छोड़ देते हैं

यही वो समय
जब वसंत आता है
और मधुमक्खियाँ धरती को
शरद का उपहार देती हैं।


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