उसका समय (कविता)

कितना स्पष्ट कहा था, उसने—
कि, तुम मेरे,
मेरा सब कुछ तुम्हारा।
सिवाय—
घड़ी के साथ वाली मेरी धड़कन,
नाख़ूनों में मैल के साथ फँसे मेरे दिन,
समय पर चिपका मेरा मासिक धर्म,
दिनों का मेरा रुटीन,
समय की मेरी यंत्रिकी...

प्यार से अबूझ उसका समय,
जो उसे थकाता नहीं।
पर, गढ़ाता प्यार,
एक दिन लाँघ गया,
उसका ‘सिवाय समय’,
और फिर वह समय भी जो उसका नहीं था,
जहाँ तक वह ख़ुद भी नहीं थी।
और फिर,
अतीत का तोता रटंत वाक्य होकर,
उसका समय,
उसका नहीं रहा।


रचनाकार : तरुण भटनागर
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