उसकी अब रहबरी हो गई है (ग़ज़ल)

उसकी अब रहबरी हो गई है।
ज़ीस्त आसान सी हो गई है।।

हर तरफ़ रोशनी हो गई है,
शायरी जब मिरि हो गई है।

अब अकेले नहीं चल सकूँगा,
रहनुमा तीरगी हो गई है।

दास्ताँ हिज़्र की जो रकम की,
अब वही शाइरी हो गई है।

दिल में अरमान है बस उसी का,
जो मेरी ज़िंदगी हो गई है।

देख कर भी नहीं देखती वो,
कितनी ज़ालिम ख़ुशी हो गई है।

ख़ून दिल का जिगर का जलाया,
और फिर शायरी हो गई है।

वो मेरे ज़हनों दिल के अलावा,
रूह की रोशनी हो गई है।

मतला ता मक़्ता अशआर मिल कर,
इक ग़ज़ल संदली हो गई है।

चाह कर भी न 'दिल' को मिला वो,
इतनी क़िस्मत बुरी हो गई है।


रचनाकार : दिलशेर 'दिल'
लेखन तिथि : 2021
यह पृष्ठ 109 बार देखा गया है
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 2122 122 122
×
आगे रचना नहीं है


पिछली रचना

हमारी राय शुमारी अगर ज़रूरी है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें