उठ किसान ओ, उठ किसान ओ,
बादल घिर आए हैं
तेरे हरे-भरे सावन के
साथी ये आए हैं
आसमान भर गया देख तो
इधर देख तो, उधर देख तो
नाच रहे हैं उमड़-घुमड़ कर
काले बादल तनिक देख तो
तेरे प्राणों में भरने को
नए राग लाए हैं
यह संदेशा लेकर आई
सरस मधुर, शीतल पुरवाई
तेरे लिए, अकेले तेरे
लिए, कहाँ से चल कर आई
फिर वे परदेसी पाहुन, सुन,
तेरे घर आए हैं
उड़ने वाले काले जलधर
नाच-नाच कर गरज-गरज कर
ओढ़ फुहारों की सित चादर
देख उतरते हैं धरती पर
छिपे खेत में, आँखमिचौनी
सी करते आए हैं
हरा खेत जब लहराएगा
हरी पताका फहराएगा
छिपा हुआ बादल तब उसमें
रूप बदल कर मुसकाएगा
तेरे सपनों के ये मीठे
गीत आज छाए हैं।
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