बादल, गरजो!—
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छवि उर में,कवि नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो—
बादल गरजो!
विकल विकल उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तृप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो—
बादल, गरजो!
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