वाणी (कविता)

घ्राण, सुनने में बड़ा पशु; विहग दृष्टि (व याद?) में,
आदमी सबसे बड़ा है वाक् में (औ' स्वाद में?)
वाक्-दुर्बल मनुज बोदा है। व शिशु के भी, प्रथम
हाथ-मुँह, जग ग्रहण करते; और इंद्रिय बाद में...?

बीवरो का डैम है मशहूर, नीड़ विहंग का;
नरेतर ईजाद की भी ज्ञात एकाधिक कथा।
मानवीय विकास की भोजन विविध हों यक कड़ी, गो-
मुख-ग्रहण प्रिपिटिव अधिक है, औंधा शिशु कृकलास-सा।

मानवेतर, मनुज के बीच सीमा-रेखा वाक् है;
ना-समझ पशु तो नहीं है, ये कहें, ना-वाक् है।

घ्राण आदिक क्रिया पाँचों स्वयंगत व्यापार हैं;
वाक् और समाज लेकिन परस्पर आधार हैं।
मनुज की सब मनुजता ही लब्ध वाक्, समाज, श्रम से;
एक दिव्य गिरोह होगा विश्व, ये आसार हैं।


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