वाणी से ब्रह्म की ओर (कविता)

मानुष की पहली
माकूल 'मुक्तक'
स्वर की सुरीली
ध्वनियों से ध्वनित
शैशव की है ये स्वर वाणी
ऊँ, आ आ, ...हून,
सृजन की समर्थता की है अमरता
वाणी की वाग्धारा के
चतुष्टय लड़ियाँ
परा, पश्यन्ति, मध्यमा, बैखरी
है ये संसार की सारिणीयाँ।

'मध्यमा' मानव चिंतन के चैतन्य में
पश्यंति ने भाषा को देखा
ज़ुबाँ पर वाणी बन 'बैखरी'
सगरी सृजन की लेखा।

मन, इच्छा-प्रधान, अग्निसदन, पृथ्वी, तेज़,
बुद्धि, ज्ञान-प्रधान, वरुण, अंतरिक्ष, विद्युत सेत।

प्रतिभा, क्रिया-प्रधान, सूर्य, मित्र, द्युलोक
परा की चिंतन धारा में
खुल जाए ब्रह्मलोक
खुल जाए ब्रह्मलोक।


रचनाकार : विनय विश्वा
लेखन तिथि : 21 अगस्त, 2022
यह पृष्ठ 219 बार देखा गया है
×

अगली रचना

प्रेम में आस


पिछली रचना

काश कि बचपना होता
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें