(1)
प्रथम कारण जो सब कार्य का,
विपूल विश्व विधायक भाव जो।
सतत देख रहे जिसकी छटा,
मनुज कल्पित कर्मकलाप में॥
(2)
हम उसी प्रभु से यह माँगते,
जब कभी हम कर्म प्रवृत्त हों।
सुगम तू कर दे पथ को प्रभो!
विकट संकट कंटक फेंक के॥
(3)
प्रकृति की यदि चाल नहीं कहीं
जगत् के शुभ के हित बाँधता।
विकट आनन खोल अभी यहीं,
उदर बीच हमें धरती धरा॥

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