वसंत (गीत)

तू आता है फिर जाता है।
जीवन में पुलकित प्रणय सदृश,
यौवन की पहली कांति अकृश,

जैसी हो, वह तू पाता है, हे वसंत क्यों तू आता है?

पिक अपनी कूक सुनाता है,
तू आता है फिर जाता है।
बस, खुले हृदय से करुण कथा,
बीती बातें कुछ मर्म व्यथा,

वह डाल-डाल पर जाता है, फिर ताल-ताल पर गाता है।

मलयज मंथर गति आता है,
तू आता है फिर जाता है।
जीवन की सुख-दु:ख आशा सब,
पतझड़ हो पूर्ण हुई हैं अब,

विकसित रसाल मुस्काता है, कर-किसलय हिला बुलाता है।

हे वसंत क्यों तू आता है?
तू आता है फिर जाता है।


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