गा रे गा हरवाहे दिल चाहे वही तान
खेतों में पका धान
मंजरियों में फैला आमों का गंध-ध्यान
आज बने हैं कल के ज्यों निशान,
फूलों में फलने के हैं प्रमाण!
खेतिहर लड़की की भोली-सी आँखों में, निंबुओं की फाँकों में
मुस्काता अज्ञान, हँसता है सब जहान,
खेतों में पका धान!
मधुऋतु रानी महान्,
मानिनी, बसंती रंग चोली झलके जिसकी,
ढलके आँचल धानी लहरा-सा,
आँखों में आकर्षण भी ख़ासा,
युग-युग का प्यासा-सा छलके दिलासा जहाँ,
उतरी उन सरसों के खेतों पर मायाविनि।
हल्के-हल्के-हल्के।
फूल में छिपे निशान हैं फल के।
उतरी वासंतिका,
तहलका-सा छाया तरु-दुनिया में, छुटा भान,
स्वागत में कोकिला का पिंडुकी का जुटा गान।
‘आशा ही आशा है'
आज अनिर्बंध, उष्ण, अरुण प्रेम-परिभाषा
पल्लव की पल्लव से सुरभिमय यही भाषा—
‘आशा ही आशा है...’
वासंती की दिगंत-रिनिनिनमयि शिंजनियाँ,
पड़ती जो भनक कान,
परिवर्तित लक्ष-लक्ष श्रुतियों में रोम-रोम,
पंखिल हैं पंचप्राण!
गा रे गा हरवाहे, छेड़ मन चाहे राग
खेतों में मचा फाग।
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