साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3568
कटनी, मध्य प्रदेश
1966
अमराई ने पहने वासंती गहने। महुआरी ले रही बलैयाँ। चम्पा सी महकी हैं छैयाँ। पुरवाई बार बार दे रही उलहने। टेसु शर्म से लाल हो रहा। बबूलों का बवाल हो रहा। अँगड़ाई ले ले नदिया लगी बहने। फाग ने बख़ूबी रंग भरे। उस पर फूलों के ढंग भरे। सूर्य अब धीरे-धीरे लगेगा दहने।
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