विनय (कविता)

पथ पर मेरा जीवन भर दो,
बादल हे, अनंत अंबर के!
बरस सलिल, गति ऊर्मिल कर दो!
तट हों विटप छाँह के, निर्जन,
सस्मित-कलिदल-चुंबित-जलकण,
शीतल शीतल बहे समीरण,
कूजें द्रुम-विहंगगण, वर दो!
दूर ग्राम की कोई वामा
आए मंद चरण अभिरामा,
उतरे जल में अवसन श्यामा,
अंकित उर छबि सुंदरतर हो!


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