साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
दिल्ली, दिल्ली
1955
...मैं हूँ मैं हूँ किसी का ...हूँ किसी का सपना देखा हुआ अनदेखा अपना स्मृति में जैसे बसा-किसी की विस्मृति का फूल बन, खिलने की हसरत में दिन-रात तपना पहरों-पहरों, देह की देहरी पर रह-रहकर अंगार-सा दहकना
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