वृक्ष से मिलती हवा है साँस लेने के लिए हमको सदा।
मधुर रसमय फल व शीतल छाँव, थक जाएँ यदा।।
वृक्ष देते जल हमें, ईंधन जलाऊ, इमारत के काठ अनेक।
वृक्ष पत्तों से हरित चारा पशुओं का और औषधियाँ अनेक।।
फिर भी क्यों वृक्षों का रक्षण छोड़, क्षति करते हैं हम?
वृक्ष हैं तब है ये जीवन, जानकर भी ध्यान नहीं धरते हैं हम।।
सोचते हैं वृक्ष जड़ है, पर असल में हम ही जड़ हैं।
समझते नहिं वृक्ष पर निर्भर चराचर जीव-जीवन, श्रृष्टि औ पर्यावरण है।।
वृक्ष तल आनन्द औ एकाग्रता, तप-ध्यान का स्थान है।
कल्प, वट, पीपल, अनेकों दृष्टांत विद्यमान हैं।।
न केवल विज्ञान, पर निज ज्ञान का भी तनिक जो उपयोग हो।
क्यों प्रदूषित प्रकृति हो, औ क्यों कोरोना सा संक्रामक असाध्य कोई रोग हो।।
वृक्ष-संरक्षण ज़रूरी है, अगर ये मान लें मन ठान लें।
आ न सकती आपदा कोई सुरक्षित हर जीव, जन, पर्यावरण, ये मान लें।।
वृक्ष पातन से बड़ा नहिं कोई भी अपराध, भ्रष्टाचार है।
न केवल एक वृक्ष, सारी श्रृष्टि पर यह घोर अत्याचार है।।
वृक्ष पातक को भले क़ानून जग कोई सजा ना दे, ये मान लें।
किन्तु कुदरत के कटुक क़ानून से वो बच नहीं पाएगा, ये भी जान लें।।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें