वही त्रिलोचन है (कविता)

वही त्रिलोचन है, वह—जिस के तन पर गंदे
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे—फटे लटे हैं
यह भी फ़ैशन है, फ़ैशन से कटे कटे हैं।
कौन कह सकेगा इसका यह जीवन चंदे
पर अवलंबित है। चलना तो देखो इसका—
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लंबी बाँहें,
सधे क़दम, तेज़ी, वे टेढ़ी मेढी राहें
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का
ध्यान इस समय खींच रहा है। कौन बताए,
क्या हलचल है इस के रूँधे रूँधाए जी में
कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे।
धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए।
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,
तप तप कर ही भट्टी में सोना निखरा है।


रचनाकार : त्रिलोचन
यह पृष्ठ 126 बार देखा गया है
×

अगली रचना

भाषा की लहरें


पिछली रचना

आत्मालोचना
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें