वल्लाह किस जुनूँ के सताए हुए हैं लोग,
हमसाये के लहू में नहाए हुए हैं लोग।
ये तिश्नगी गवाह है घायल है इनकी रूह,
चेहरे ही तबस्सुम से सजाए हुए हैं लोग।
ग़ैरत मरी तो वाक़ई इंसान मर गया,
जीने की सिर्फ़ रस्म निभाए हुए हैं लोग।
कहने को कह रहे हैं मुबारक हो नया साल,
खंज़र भी आस्तीं में छुपाए हुए हैं लोग।

अगली रचना
पहले जनाब कोई शिगूफ़ा उछाल दोपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
