वक़्त बहुत ही झूठा निकला (ग़ज़ल)

वक़्त बहुत ही झूठा निकला,
ख़ाक मनाएँ रूठा निकला।

अर्जुन की जब बात चली तो,
देखो द्रोण अँगूठा निकला।

कविताओं में बात बड़ी है,
चिंतन वाह निजूठा निकला।

जब-जब नाम-पता पूँछा तो,
उनका काम अनूठा निकला।

आज सियासत पर क्या बोलें,
रहबर यार अपूठा निकला।


लेखन तिथि : 20 जनवरी, 2022
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अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती : 22 22 22 22
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