वक़्त ठहरा कब है (कविता)

वक़्त ठहरा कब है बता मानव,
जीवन मूक खड़ा रह जाता है।
अबाधित दुरूह विघ्न से ऊपर,
वायुगति कालचक्र बढ़ जाता है।

शाश्वत प्रमाण काल ब्रह्माण्ड जग,
महाकाल कराल बन जाता है।
जो अनुगमन वक़्त हर पल चलता,
कालजयि अमर गीत उद्गाता है।

मिले हैं कुछ लम्हें दुर्लभ जीवन,
परहित कर्मवीर पथ जाता है।
स्वर्णिम गाथा यश अमर विजय रच,
निज काल पत्र नाम लिख जाता है।

अनंत अगाध महिमा वक़्त चरित,
भूत वर्तमान भविष्य विधाता है।
युग धारक पालक संहारक जग,
वक़्त अतीत साक्ष्य बन जाता है।

विपरीत समय चलता जो मानव,
खिलवाड़ वक़्त से कर जाता है।
जन पथभ्रष्ट सुपथ सत्कर्म विमुख,
नश्वर काया काल चबाता है।


लेखन तिथि : 13 नवम्बर, 2022
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