वे लौट नहीं रहे
हाँ वे लौटते थे
अपने तीज-त्यौहार पर
वे कमा कर लौटते थे
वे ख़ुश-ख़ुश लौटते थे
उनके बच्चे के हाथों में खिलौने होते थे
सस्ते लेकिन उनके दमकते चेहरों के सामने
दुनिया कंगाल दिखा करती थी
और फूलों में उनके लौटने पर
रंग खिल उठते थे और ख़ुशबू
चौगुनी हो जाती थी
और घर का माहौल
ईद और दीवाली-सा हो उठता था
तब उनके लौटने पर लोक
अपने गीतों के साथ मदमस्त हो उठता था
अभी वे लाखों-लाख मजबूर और भयाक्रांत
अपनी बची-खुची गृहस्थी को सिरों पर उठाए
और बच्चों की ज़िंदगी को बचाने का ख़्वाब लिए
बिना गाड़ी-घोड़ा के भाग रहे हैं
वे भाग रहे हैं गिड़गिड़ाते हुए कि उन पर रहम हो
भूखे-प्यासे और बिन पैसों के
डंडे खाते, मुर्ग़ा बनते और उकड़ूँ मुद्रा में
वे बमुश्किल सही भाग रहे हैं
वे जान बचाने की ग़रज़ से भाग रहे हैं
और इस तरह घरों की ओर बेतहाशा भागना
दोस्तों घर लौटना नहीं है।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें