याद एक चिड़िया है
कभी उड़कर पास चली आती है
कभी दूर जाकर
ओझल हो जाती है
बुलबुलों की तुतलाहट
मैनाओं का शोर
कौडिल्ले की चीख़
और फुलचुही की
रसपान करने की छटपटाहट
याद के पंख कभी भीगे होते हैं
कभी मिट्टी में नहाए
कभी उल्लू जैसी सुर्ख़ आँखें लिए
कभी उँघती फ़ाख़्ता जैसे
पास और दूर के इस खेल में
मुझसे वह बिछुड़ नहीं पाती है
और न ही उड़ा कर ले जाती है
अपने संग
क्या कोई अपना पूरा शरीर
देख सकता है याद की तरह?
क्या याद की पीठ पर छपे रंग पूरे
दिखाई देते हैं?
याद कभी दुविधा में होती है
कि वह अनदेखे को देखती रहे
या भूल जाए देखना
मुझे बेचैन कर दे
या निर्ममता से थपकी देकर सुला दे
हर बार उजाड़ छोड़कर
वह एक चिड़िया की तरह
चल देती है
दूसरी चिड़िया आती है
और फिर से बटोरती है
उसके तिनके
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