साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
दौसा, राजस्थान
1990
सौंफ़ कट रही है मगर उसकी ख़ुशबू नहीं डंठलों में भी उतनी ही ख़ुशबू है जो अभी कुछ दिन और रहेगी हवाओं में तुम्हारे चले जाने पर भी तुम्हारी याद की ही तरह यह तपेगी जलेगी ढह पड़ेगी
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