यह एक दिन (कविता)

यह एक दिन है बिल्कुल दिन कहा जा सके जिसे
छतें सूनी पेड़ चुप हवा बंद और धूप
शुरू करना है यहीं से
नया जीवन

बस थोड़ा-सा असबाब
कुछ चिंताएँ प्राचीन
और देह से गुज़रते कुछ सपने

मुझे पता नहीं रास्ते कहाँ-कहाँ से होकर गुज़रते हैं
कहाँ गए वे लोग जो कह कर गए थे जल्दी वापस आने को?
कुछ नहीं लौटता है जीवन में जो जा चुका हो

पर ये क्या कम है
हर दिन नया होता हूँ
नया होता है दिन बस इसी तरह कि यह भी एक दिन है,
जैसे छतें सूनी पेड़ चुप हवा बंद और धूप

हुआ हूँ नया
और नए दिन को
नए दिन की तरह देख कर
संसार का हर दिन नया दिन है
इस सच्चाई से भी ज़्यादा नया
होता हूँ
हुआ भी तो जैसे
अभी अभी!


रचनाकार : हेमन्त शेष
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