यह जगह काफ़ी है (कविता)

दो पतों के बीच लापता भूगोल में
लिख बंद कर दिया पढ़ना मैंने चेहरा एक नाम दूसरा फिर तीसरा,
मेरी तुम्हारी कहानी रह गई किसी बात पर
सूखते कपड़ों-सी उलट अपनी देह को टटोलती हवा में
हमेशा की तरह इस बार भी शेष अनेक
उन पन्नों में एक आज फिर
उलटता रखता
उठ कर चल देता

सर्द मौसम मफ़लर गले में झूलता
मुड़ के कुछ देखते जेब टटोलते
कि पहचाना नहीं जाता हूँ ख़ुद ही
सड़क से एक गली में हवा होते
सरे आम से दरवाज़े पार कहीं,
घर बार, आँगन एकांत में

उम्मीद की शक्ल में डर हर क़दम निहित
मेरे साथ है किसी पर्ची पर लिखे आगमन और प्रस्थान की तरह,
तो अब बंद कर दिया
यहाँ वहाँ छायाओं में क़द नाप अपने पाँवों को बाँधकर भागना,
यह जगह काफ़ी है खड़े होने छुपने
और लेटकर चुपचाप
हरी दूब हो जाने के लिए


रचनाकार : मोहन राणा
यह पृष्ठ 204 बार देखा गया है
×

अगली रचना

कुछ कहना


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें