जीवन क्या है
यह समझाने नहीं
ख़ुद समझने की ज़रूरत है
अदृश्य से जीवन की शुरुआत
पल-पल, छिन-छिन विकास की गति
कितने रंग और दौर दिखाती है,
नवजात, अबोध और बालपन से
चलते हुए बाल्यकाल, तरुणावस्था से होते हुए
युवा और फिर प्रौढ़ बनाती है
ज़िंदगी के रंग दिखाती है
धूप छाँव का बोध कराती
धीरे-धीरे खोखला होकर
जीर्ण, शीर्ण, क्षीण हो असहाय हो जाता
और फिर जीवन समाप्त हो जाता
जीवन चक्र अपना चक्र पूरा हो जाता
जब तक जीवन समझ में आता
जीवन का चक्र इतिहास हो जाता है।
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