सुबह का होना
चिंताओं का समीकरण।
फिर शुरू होती है,
घटा-गुणा, भाग-दौड़।
लगातार गतिशीलता
बढ़ाती है दिल की धड़कन।
मशीनों की खटखट
और धुआँ साँस का पर्याय।
मशीनी युग में
शाम का सुहानापन
लाता शिथिलता।
अकर्मण्यता
कि इंसान महज़
एक यंत्र
बनकर रह गया।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।