साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
1947 - 2011
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी, फिर कहाँ से बीच में मस्जिद व मंदिर आ गए। जिनके चेहरे पर लिखी है जेल की ऊँची फ़सील, रामनामी ओढ़कर संसद के अंदर आ गए। देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं, कुर्सियों पर फिर वही बापू के बंदर आ गए। कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र, आजकल बाज़ार में उनके कैलेंडर आ गए।
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